ANIMAL MOVIE REVIEWS
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एनिमल बस कई सालों बाद ऐसी फिल्म आई है जिसका इतना सीधा और आसान जवाब नहीं दिया जा सकता कि मैं पूरे 10 पॉइंट्स लगाऊं, इसके बाद एकदम सौ प्रतिशत क्लियर होगा कि क्या तुम्हें इस फिल्म को देखना चाहिए या नहीं। पहले छोटा सा इंट्रो देते हैं - देश के सबसे अमीर आदमी का बेटा, जिसका दिमाग बिलकुल पागल है, और इस पागलपन की वजह उसके पापा हैं। इसके बाद, गोलियों का बखान शुरू होता है, और बेटे की जिंदगी का एक ही मकसद है - पापा का पीछा करना, उसको ढूंढ़ना है, मारना है, और बदला लेना है। लेकिन बदला इंसान इंसान से ही लिया जा सकता है, और जब सामने खुद शैतान खड़ा होता है, तो अच्छे हीरो की भी हवा निकल जाती है।तब हीरो को हीरो बनकर नहीं एनिमल बन के शिकार करना पड़ेगा . इस फिल्म की कहानी हीरो वर्सेस विलन नहीं, बल्कि विलन वर्सेस विलेन की है। समझे?
पॉइंट नंबर 1: सेफ्टी वार्निंग - खतरे की लाल घंटी!
फैमिली के साथ फिल्म देखने से पहले कान जरा खोलकर सुन लो: मेरी इस बात को, एनिमल सिर्फ नाम की एनिमल नहीं है। फिल्म के अंदर बहुत कुछ ऐसा है जिसको देखना तो छोड़ो, सोचने की भी हिम्मत नहीं होती। डायरेक्टर्स की फिल्म का स्टाइल बाकी बोल्ड है, और इसे एडल्ट सर्टिफिकेट से मिला है। यह एक फैशन फिल्म नहीं है, जिसको इस तरह के डायलॉग जो किसी और के सामने नहीं बोलता है। कुछ एडल्ट सीन्स भी हैं, जिनको देखते वक्त शायद आप अनकंफर्टेबल हो जाओगे। विद फैमिली, अब आपका पारिवारिक माहौल इसकी इजाजत देगा कि नहीं। फैसला तुम करो।
पॉइंट नंबर 2: एनिमल को एक एक्शन फिल्म समझ के थिएटर जा रहे हो तो पैसा वेस्ट मत करो। एनिमल हाथ पैर वाली फिल्म नहीं है, दिमाग की कहानी है। संदीप पंगा की फिल्म आपके सामने शीशा लगाकर खुद को दिखाना चाहती है। यह कोई एंटरटेनमेंट नहीं है, कुछ ऐसे सीन जो दिमाग में घुस के पुरानी यादें बाहर निकलते हैं, जो भूलकर भी नहीं भूल पाते हो। आप दिमाग वाली फिल्म एक्शन बोल कर बेज्जती मत करो। हां, वह बात अलग है कि इंटरवल से ठीक 10 मिनट पहले थिएटर में ऐसा एक्शन होगा जो शायद 100 सालों तक भूल नहीं पाओगे। आप हम लोग आज तक सिर्फ मशीन गन देखकर पागल हो जाते हैं, ना संदीप मांगा मशीन गन का पूरा परिवार उठाकर लाए हैं। कान फट जाएंगे, और हां, यह कोई वीएफएक्स वगैरा नहीं है, एकदम असली मेड इन इंडिया गण हैं, यह पूरे 500 किलो की संदीप खुद डिजाइन किया है।
पॉइंट नंबर 3: फिल्म देखने से डर रहे हो? अगर आपके अंदर क्या डिस्टर्बिंग दिखाया जा सकता है, खून वाले सींस को ज्यादा भयानक तो नहीं है? नहीं जी, इस डर को दिल से निकाल सकते हो। आप फिल्म "वायलेट" जरूर देखें, लेकिन "डिस्टर्बिंग" बोलना गलत होगा। कुछ ऐसा मेंटल हेल्थ पागलपन नहीं होगा, अंदर डोंट वरी मार्केट वाले चीज भी ठीक-ठाक हैं। कुछ ऐसा सदमा लगने वाली चीज नहीं है, कोई किसी को कटती नहीं। खाने वाला घबराओ मत।
पॉइंट नंबर 4: ईमानदारी से बता देता हूं, एनिमल की कहानी बिल्कुल नई या फिर यूनिक टाइप की नहीं है। सिंपल, सीधी, एबीसीडी, गुल जलेबी जैसा कुछ नहीं है अंदर। हां, लेकिन कहानी दिखाने का तरीका वह जबरदस्त है, प्रेजेंटेशन बेस्ड सिनेमा, जो आज से पहले किसी भी दूसरी इंडियन फिल्म में नहीं देखा जाएगा। आपने हर इंसान के दिमाग में एक फ़िल्टर होता है, जिसमें वह नापतोल की किसी भी चीज को बोलता है। संदीप सांगा ने उसको फाड़ के सब कुछ रियल निकाल दिया है, यही से आता है।
पॉइंट नंबर 5: यह फिल्म बिल्कुल नहीं देखनी है, हर उस इंसान को जो फेमिनिज्म नहीं, बल्कि उसकी गलतफहमी में जी रहा है। हीरो हीरोइन अंदर एक दूसरे के साथ बिल्कुल ट्रांसपेरेंट है, आर पार दिख जाता है, वह क्या बोलते हैं। इक्वल लड़का लड़की का फर्क जीरो इसीलिए कुछ ऐसी बातें भी हैं जो स्क्रीन के पीछे होती हैं, लेकिन थियेटर स्क्रीन तो कर हो नहीं सकती। वांगा साहब की यह हिम्मत लोगों को खटक जाएगी, एक हीरो का दूसरे एक्ट्रेस को अपना जूता चाटने को बोलना यह चीज कहानी में है फ्लोर के साथ, लेकिन कुछ लोग कंट्रोवर्सी का झंडा उठाएंगे।
पॉइंट नंबर 6 पर फिल्म लंबी जरूर है, लेकिन बोरिंग बिल्कुल नहीं है। 3:30 घंटे पब्लिक को थिएटर में बैठने के बाद भी, हर कोई खुश होकर बाहर क्यों निकालेगा, जानते हो क्यों? क्योंकि एंडिंग के बाद भी फिल्म खत्म नहीं होती, एक पोस्ट-क्रेडिट सीन है जहां पर पूरे 3 घंटे जो आपने देखा उसे भी खतरनाक चीज़ छुपी है। इसके लिए कोई भी तैयार होकर थिएटर नहीं गया था। फिल्म के बाद बोनस जैसा है यह सीन, उछल पड़ोगे सीट से, दोनों हाथों से ताली मारोगे, गारंटी।
पॉइंट नंबर 7: जो लोग टेंशन में चले गए थे, रश्मिका का यह सीन देखने के बाद, ट्रेलर में और सोच रहे थे, "कैसे जी लेंगे भाई इसको?" आपका डर सही था। फिर मैं उनका कैरेक्टर बहुत अच्छे से लिखा है, लेकिन रश्मिका थोड़ा सा ठीक नहीं लगसती है कानों। में रणबीर के साथ केमिस्ट्री फायर है और जो कैरेक्टर इन्होंने प्ले किया है, उसको सेलेक्ट करने के लिए गट्स चाहिए थे। इस बात पर ताली मार सकते हो तुम।
पॉइंट नंबर 8: यह है कि बॉबी देओल का कैम बैक जबरदस्त है, उनकी एंट्री फिल्म में ऐसे करवाई जाती है जिससे फिल्म का पूरा गेम बदल जाता है, बट सॉरी थोड़ा सा दिल टूटेगा, आपका यह जानने के बाद कि बॉबी देओल का रोल काफी छोटा है, कैमियो टाइपका, लेकिन असरदार इतना है, पूरी फिल्म पलट सकता है, जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए, बस यह डायलॉग एकदम सटीक है: "बॉबी देओल 2.0" के कमबैक को समझने के लिए।
पॉइंट नंबर 9: सबसे बड़ी पावर इमोशंस है, हर बेटा, हर भाई, हर पति के अंदर वाली बातें जो कभी बाहर नहीं आतीं। आज सुनोगे एनिमल को देखते टाइम, ऐसा लग रहा था मुझे यह सिर्फ फिल्म नहीं है। संदीप ने अपनी जिंदगी का कुछ तो पर्सनल टुकड़ा काट के रख दिया है पब्लिक के सामने। स्पेशली, फिर जो म्यूजिक आया जिसमें बी प्राक में तड़का लगाया वहां से तो इमोशंस के सारे आर पार हो गए और "पापा मेरी जान" रिपीट पर चलेगा।इसीलिए, थिएटर से निकलते समय आप कंफ्यूज हो जाओगे, जो फिल्म में हुआ, जो रणबीर ने किया, कितना सही, कितना गलत, तेल लेने गया, पापा-बेटे का प्यार ऐसा हो वरना नहीं हो, बस यही तो है पॉइंट नंबर 10
रणबीर कपूर ने ऐसा काम किया है कि वह सुपर से भी ऊपर वाले स्टार बन गए हैं। उनमें उस स्तर का टैलेंट है जिसमें न जाने कितने छोटे-मोटे तारे की एक्टिंग शुरू होती है और फिर खत्म हो जाती है। रणबीर कपूर का पागलपन इस फिल्म के अंदर अलग-अलग पर चला गया है।हर एक डायलॉग में, आपको रणबीर नहीं, बल्कि एनिमल नजर आता है। ऐसी फिल्में करने के लिए वही व्यक्ति तैयार होगा जो दिल से सच्चा आर्टिस्ट है, जिसको सही-गलत, नेगेटिव-पॉजिटिव से लेना-देना ही नहीं है। कुछ अपनी एक्टिंग स्किल्स दिखाने का मौका संदीप पंगा ने रणबीर को दिया था, और उसने उसे पर चौका नहीं छक्का मार दिया है। कुछ लोग रणबीर को देखकर डर रहे थे कि बाकी बच्चे उसके जैसा बनने की कोशिश तो नहीं करेंगे, लेकिन आपका डर बिल्कुल सही है। एक्चुअली, रणवीर ने परफॉर्मेंस इतना गजब का दिया है कि हर कोई उसके जैसा बनना जाएगा, लेकिन एक्टिंग और रियल लाइफ में फर्क होता है। वह लोगों को सिखाना पड़ेगा। लास्ट में, बस तुम धन्यवाद बोल दो इस इंसान को, जिसका नाम मैं ऑलरेडी इतनी बार बोल चुकी हूं कि आपको नाम लेने की जरूरत ही नहीं है, सिर्फ यह फोटो ही काफी है। बस एक छोटी सी शिकायत है मेरी: संदीप पंगा ने यह फिल्म दिल से बनाई है, इसलिए वह हर दिन पब्लिक को दिखाना नहीं, फुल करना चाहते हैं, लेकिन इस वजह से ना पिक्चर सेकंड हाफ में कई जगह पर लंबी खिंच जाती है। रणबीर रश्मिका की बातें जरूरी हैं, लेकिन कम डायलॉग में होती तो स्क्रीन पर फास्ट होता। तो बस, मेरे पास एनिमल को देने के लिए पूरे 5 तारे हैं। आधा इसलिए नहीं कटेगा क्योंकि यहां से इंडियन सिनेमा को बदल देगी यह फिल्म, और भी डायरेक्टर्स अब शायद हिम्मत दिखाएंगे बोल्ड, रियल, बिना फिल्टर सिनेमा बनाने की। हम साथ साथ हैं का टाइम गया है, पब्लिक को एनिमल चाहिए।
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